मेरा परिचय क्या।
प्रभु सत्ता से भिन्न
मेरी अपनी सत्ता क्या।
ये जीवन, जीव-मरण का अभिनय है,
सुकर्म, मनुज-जीवन की यज्ञ-आहुति,
परमार्थ, मनुज-जीवन का है तर्पण,
सत्य-पथ से न हो तुम विचलित,
रहो अग्रसर धर्म-पथ पर,
तन-मन-धन सब कर दे अर्पण,
तू क्या,
तेरा परिचय क्या।
मैं क्या,
मेरा परिचय क्या।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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