Monday, May 27, 2013

{ २६३ } बातें





अब न अच्छी लगती प्यार की बातें
ये सब अब हैं लगती बेकार की बातें।

आसमाँ-चाँद-सितारे, गुलो-चमन से
बढ कर अब हो गईं तकरार की बातें।

जाने क्योंकर बदली सबकी फ़ितरत
रह गईं बाकी केवल बेजार की बातें।

दिल पर लगती चोट पर बन्द न होती
आपस की ये बेकार-तकरार की बातें।

बेरँग चेहरों से भरी हुई इस बस्ती मे
बाकी बच गईं केवल बीमार सी बातें।

------------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ २६२ } इश्क का इजहार






हुस्न से इश्क का इजहार कर दिया
खुद को हुस्न का बीमार कर दिया।

हुस्न की मदभरी नज़र के जाम ने
बाहवास को मय-खुमार कर दिया।

छम से आके दिल के सूने आँगन में
हुस्न ने इश्क का श्रृँगार कर दिया।

शहनाई के स्वर, मधुमासी गीतों ने
पतझर को मौसमे-बहार कर दिया।

रहगुज़र पर खिल गये सुर्ख गुलाब
दिल को महकता गुलजार कर दिया।


............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल