Thursday, February 25, 2016

{ ३२४ } मोहब्बत





याद है मुझे अपने इश्क की वो कहानी
ख्वाबों में आती हैं वो बाते सुहानी.......।

न जाने क्यों मुझसे रूठी रहती हैं.........
हमारी-तुम्हारी वो बातें पुरानी.............।

मुझको नहीं तनिक भी शऊर...............
जो कह पाऊँ वो बातें जुबानी................।

मुझको तो बस मोहब्बत है तुमसे.........
नहीं आती कहनी वो बातें रूमानी..........।।


................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, February 19, 2016

{ ३२३ } स्त्री हो या पुरुष






एक इन्सान सबमें होता है
स्त्री हो या पुरुष----------

एक शैतान सबमें होता है
स्त्री हो या पुरुष----------

जो निज में
इन्सान को बढ़ा ले
शैतान को गिरा दे
वही भगवान होता है
स्त्री हो या पुरुष----------।।


................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, February 15, 2016

{ ३२२ } आज नहीं तो कल हो शायद





सुन्दर लहजा, मीठे बोल, अनोखी बातें
आज नहीं तो कल हों शायद।

हर सिम्त उसकी ही जलवासाजी
आज नहीं तो कल हो शायद।

हर महफ़िल में उसके हुस्न के जलवे
आज नहीं तो कल हो शायद।

फ़िज़ा में खुलूसे-बूए-गुल
आज नहीं तो कल हो शायद।

उसके सर्द दिल में तपिश
आज नहीं तो कल हो शायद।

मिट जाये उसके-मेरे दर्मियाँ का फ़र्क
आज नहीं तो कल हो शायद।

मेरी गज़ल उड़ा दे उनकी रातों की नींद
आज नहीं तो कल हो शायद।

.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



सिम्त = तरफ़
जलवासाजी = सौन्दर्यपूर्ण उपस्थिति
फ़िज़ा = वातावरण
खुलूसे-बूए-गुल = आत्मीयता के फ़ूल की सुगन्ध

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