Sunday, February 2, 2014

{ २८६ } शब्द





शब्द,
परमात्मा की श्रेष्ठ कृति है।

शब्द,
परमात्मा की अनुकृति है।

शब्द,
लिपि के वस्त्र पहन
कागज पर उभर जाते हैं।

शब्द,
नाद का श्रृँगार कर
जिह्वा से उच्चारित हो जाते हैं।

शब्द,
मष्तिष्क में
उमड़ते-घुमड़ते हैं
और रच डालते हैं
महाग्रंथ।

शब्द,
कभी हँसते है
कभी गाते हैं
कभी गुमसुम
उदास हो जाते है।

शब्द,
ज़ख्म भी है
मरहम भी है।

शब्द,
कभी दवा है
तो कभी दुआ हैं।

शब्द,
मधु की तरह मीठे है
तो कभी हलाहल से कड़वे हैं।

शब्द,
शीतल बयार हैं
महकता प्यार हैं।

शब्द,
कभी रोष हैं
कभी आक्रोष हैं।

शब्द,
हमको हँसाते-रुलाते है
कभी पुचकारते-दुलराते हैं।

शब्द नाद हैं
शब्द निनाद हैं
शब्द ब्रह्म हैं
शब्द पर्~ब्रह्म हैं।।


----------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल


Saturday, February 1, 2014

{ २८५ } रहनुमा की तलाश





देश के हालात पर नहीं किसी की नजर है
बुलन्द मुल्क का महल हो रहा खन्डहर है।

बौरा गये हैं बागबान अपने इस चमन के
गुल को बिसरा रहे और खार की फ़िकर है।

बेगुनाहों की कराहों से घुटा जा रहा है दम
दहशतो से दरक रहा दिल किस कदर है।

हर मोड़ पर किस कदर छा चुका है धुआँ
दुख-दर्द उदासियों से भरी हुई रहगुजर है।

अब ऐसे रहनुमाओं की देश को तलाश है
ज़ज़्बातों को जिन्दा रखे जिसका जिगर है।


--------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल