Sunday, April 30, 2017

{३४२} चढ़ गई मोहब्बत परवान





लो चढ़ गई मोहब्बत परवान है
कर दूँ ये जान  तक  कुर्बान है।

इश्क का सम्मान करेगा वो ही
जिंदा जिस शख्स में इंसान है।

इश्क का  तज़ुर्बा हुआ उसे भी
चाहत से वो  कब अनजान है।

हाय रे  कातिल अदा की नज़र
न कहो कि वो अभी नादान है।

यूँ तो न दूर जाइये ऐ नाज़्नीन
वस्ल का पल रहा अरमान है।

........................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, April 25, 2017

{३४१} मुरझा चली हैं तमन्नायें





खो गईं हैं सब कामनायें
सो गईं हैं  सम्भावनायें।

पास रह  गईं हैं उलझने
यातनायें  ही  यातनायें।

नाम की  बस  ज़िन्दगी
मर गई  सब  भावनायें।

रब भी  अब सुनता नहीं
लौट आईं सब प्रार्थनायें।

अब छोड़ ही दूँ ये दुनिया
मुरझा चली हैं तमन्नायें।

........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, April 20, 2017

{३४०} नज़रों से दरकिनार मत करना





या तो किसी से प्यार  मत करना
या इश्क का किरदार मत करना।

गिरा दो ये नफ़रतों के ऊँचे महल
नादान दिलों में दरार मत करना।

नादानियों  में  खो  न  जाऊँ कहीं
नज़रों  से  दरकिनार  मत करना।

मँज़िलें  ख्वाब बन कर न रह जाएँ
ऐसे वक्त का इन्तज़ार मत करना।

दिल  की  लगी  को  दिल  ही जाने
 दिल को कभी  बेकरार मत करना।

................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

{३३९} ज़ख्म की ज़ख्म ही दवा है





यारों तुमने  सच ही कहा है
ज़ख्म की  ज़ख्म ही दवा है।

उसके  जाने  का  न  हो दर्द
दिल  पे  पत्थर  ही  रखा  है।

ज़ख्म दिखा के क्या फ़ायदा
यहाँ पे मुस्कुराना ही भला है।

शायद  वो  कभी आ ही जाएँ
दिल का दरवाजा भी खुला है।

लाश की मानिन्द  हो गया हूँ
ज़िस्म है पर जान ही ज़ुदा है।

.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल