Tuesday, March 11, 2014

{ २८८ } याद तुम्हारी





अन्तर्मन के दर्पण में
कौंध-कौंध जाती है
याद तुम्हारी।

बिरहन कोयल की कूक सी
दर्द का तराना गाती है
याद तुम्हारी।

कोमल हृदयांगन में
कठोर काँटे सी धँसती जाती है
याद तुम्हारी।

सूनी-सूनी बगिया में
चिडिया सी चहचहाती है
याद तुम्हारी।

नीरव रात्रि में
अकेले दीप सी टिमटिमाती है
याद तुम्हारी।


--------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, March 2, 2014

{ २८७ } आओ धनुर्धर आओ !






आओ धनुर्धर आओ !

करोड़ो-जन
यहाँ गिन रहे हैं
समस्याओं के बियावान के
पेड़-पौधे-पत्ते।

करोड़ो-जन
यहाँ प्रतीक्षा कर रहे हैं
उस धनुर्धारी अर्जुन की
जो आये
और निराकरणरूपी चिड़िया की
आँख को लक्ष्य कर
शर-सँधान करे।

आओ धनुर्धर आओ ।


--------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल