Sunday, April 21, 2013

{ २६१ } जी लें सुख के दो चार पल






आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल

समय ने बढाईं जो दूरियाँ अब टल रहीं
विषम-विवशतायें हाथ अपने मल रहीं
सुधियों ने, सरोवर में खिलाये है कमल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।१।।

छोड दें ये झंझावात की गहन परछाइयाँ
आओ नापें बढ कर व्योम की ऊँचाइयाँ
अब न पास आने दें विषम-विकल पल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।२।।

रच गये हैं मिलन के छन्द गाने के लिये
संगीतमय पल प्राणों में सजाने के लिये
आओ गुनगुनायें हम इन्हे मचल-मचल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।३।।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



Saturday, April 6, 2013

{ २६० } उदास मन






मन,
बहुत उदास है आज,
पर उसने
अपने शरीर को
उजले आवरण से
ढँक रखा है,
अपने चेहरे पर
चिपका ली है
एक बीमार सी मुस्कान
और खोज रहा है
मन के कँटीले बियावान में
सौगँधित सुमनों के बागीचे को।।

.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


Wednesday, April 3, 2013

{ २५९ } हसीन शाम






कितनी हसी्न खिली है शाम
आओ टकरायें जाम से जाम।

लब भी गुनगुना उठे प्यार से
बताओ ऐसा कोई प्यारा नाम।

लौटॆं फ़िर से प्यार की खुश्बूयें
डूबे रँगीनियों में सुबहो-शाम।

टकरा कर गुलों की खुश्बू से
ऋतुयें भी करें हमको सलाम।

जो कम करे दिलों के बोझ को
ऐसे गमों से लें हम इन्तकाम।


...................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल