हुजूर उसका नूर बहुत लाजवाब है।
बैठे हैं कई रिन्द एक लम्बी कतार में
उसकी आँखे जैसे महँगी शराब है।
मेरी फितरत फबेगी खूब तुझ पर
तेरे चेहरे पर पड़ा मेरा ही हिजाब है।
फूलों की घाटी में दिल का कारवाँ
क्या खूब उतरा सुनहरा सा ख्वाब है।
खुद से कहा-सुनी के मजे लूट रहा हूँ
अपने सवाल का अपना ही जवाब है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment