Friday, October 7, 2022

{३६६ } दास्ताने-ग़म किसी को क्या सुनाऊँ





कितने पिये दर्द के आँसू क्या बताऊँ 
दास्ताने-ग़म किसी को क्या सुनाऊँ। 

रिश्तों के आईने में पड़ चुकी हैं दरारें 
आईने से चेहरा अपना कैसे छुपाऊँ। 

चारों तरफ से चल रही हैं तेज हवाऐं 
इन आँधीयों के बीच दीप कैसे जलाऊँ। 

आवारगी में ही कट गई मौसमें-बहार 
पतझड़ों में दामन अपना कैसे बचाऊँ। 

साजिशें सभी मेरे अपनों की ही तो थीं 
इल्ज़ाम दुश्मनों पर भला कैसे लगाऊँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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