Sunday, October 30, 2022

{३९६ } तुम्हारे इंतजार में





वापस जाते हुए 
चूमना था तुम्हें,
अपनी आँखों से 
ओझल होने तक 
देखना था तुम्हें,
होंठों की बुदबुदाहट 
बन्द होने के पहले 
कहने थे कुछ शब्द,
गिनना था अँगुलियों पर 
अपनी अगली मुलाकात का 
लम्बा दुखदायी अन्तराल। 


अचानक आँखों से 
दो आँसू टपके 
और तुम यकायक 
आँखों से ओझल हो गयी। 

मैं आज भी 
वहीं अनथक बैठा हूँ,
सिर्फ तुम्हारे इंतजार में।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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