ज़िन्दगी दर्द भी है खूबसूरत भी।
शबे-रोज पढ़ता हूँ तुम्हारी आँखें
ये शरारत भी है और मोहब्बत भी।
ज़िन्दगी में गर दो-चार ग़म मिले
वो नसीहत भी है और हिम्मत भी।
माँ का आँचल है अपना आसमाँ
यही इनायत भी और इबादत भी।
यूँ ही फ़कीरी में तेरे गुण गाता रहूँ
यही मोहब्बत भी यही इबादत भी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(३०-१०-२०२२ ) को 'ममता की फूटती कोंपलें'(चर्चा अंक-४५९६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार आपका
Deleteखूबसूरत गजल
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर गजल
ReplyDeleteआभार आपका
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