Wednesday, October 26, 2022

{३९२} ज़िन्दगी का हिसाब





मेरी  ज़िन्दगी  की  किताब 
काँटों  सजा  कोई  गुलाब। 

वक्त   की  कश्मकश   में 
ढ़ल  गया  उम्र  का शबाब। 

कभी  दिन  सवाल  से खड़े 
कभी  रात  उसका  जवाब। 

कभी रात का चाँद ज़िन्दगी 
कभी  भोर  का  आफ़ताब। 

राज नहीं जीस्त  की कहानी 
यही मेरी ज़िंदगी का हिसाब। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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