Saturday, October 1, 2022

{३६०} मौन हूँ मैं





मौन हूँ मैं,
मौन रह कर ही 
बता पाऊँगा दुनिया को 
कि मेरे हृदय में भी 
कुछ जज़्बात मचलते हैं,
दिल बल्लियों उछलता है,
चाहता मैं भी हूँ 
कि प्यार की कलियाँ महकें,
भावनाओं के झरने झरें,
मेघ कि हर गरज पर 
प्यार की बरसात हो,
चकाचौंध भरी इस दुनिया में 
मेरी भी एक छोटी सी चाहत है 
कि किसी हृदय रूपी प्रेम वीणा का 
गुँजित तार बनूँ,
कोई मेरे भी हृदय की 
मौन भाषा को समझे,
पर शायद अमावस की 
काली रात सा ही 
अन्धकारयुक्त है मेरा भाग्य,
इसीलिए भटकता हूँ 
उस रोशनी के लिए 
जिसका तारा अभी तक जन्मा ही नहीं।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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