Thursday, October 6, 2022

{३६४ } दिये मोहब्बत के क्यों जला नहीं देते





मुकद्दर मेरा तुम क्यों बना नहीं देते 
इक झलक क्यों दिखला नहीं देते। 

मरीजे-इश्क की इतनी तो खैर कर 
जानम बगैर जुर्म के सजा नहीं देते। 

दिए हैं ज़ख्म तो आहें भी अता कर 
ये खाली जख्म तन्हा मजा नहीं देते। 

दगा देते हैं मतलब परस्त ही केवल 
वफ़ा परस्त किसी को दगा नहीं देते। 

हर एक सिम्त नफरत ही नफरत है 
दिये मोहब्बत के क्यों जला नहीं देते। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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