कहीं शोर सुनाई नहीं पड़ता,
इंसानियत खामोश है,
नपुंसकता की परिभाषा
हिजड़े तय कर रहे हैं,
गूँगे फुसफुसा रहे हैं,
बहरे सुनने लगे हैं,
और लँगड़ों की
फर्राटा दौड़ हो रही है,
शायद हम ऐसी ही
खबरों की प्रतीक्षा में हैं,
तभी तो,
देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ख़बर
अब हमें रोमांचित नहीं करती,
बड़ी नहीं लगती,
ये खबरें हमें
उत्तेजना से परे
बर्फ़ की तरह
ठण्डी लगती हैं,
और हमें ठण्ड से परहेज है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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