पाँखुरी
Thursday, October 13, 2022
{३७० } दुश्वारी ही दुश्वारी है
दुश्वारी ही दुश्वारी है
जीना भी लाचारी है।
करता है मुझे याद
उससे मेरी यारी है।
खुशियों का हो चमन
कितनी जिम्मेदारी है।
इश्क हम कैसे करते
क्या औकात हमारी है।
मतलब से मतलब रखना
कहलाती होशियारी है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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