Sunday, October 9, 2022

{३६७ } हम न लड़खड़ाते हैं





दाँव पर अपने दिल को हम लगाते है 
चाहते हैं जिन्हे, उन्ही से मात खाते हैं। 

आगे-पीछे खाई है, बचें तो हम कैसे बचें 
चलो इस मुसीबत में मुकद्दर आजमाते हैं। 

हम हँसते खुशियों में खिलखिला कर खूब 
और मुश्किलों में भी हम यूँ ही मुस्कुराते हैं। 

बुझाते थे कभी दूसरों के घरों की आग को 
आज अपने घर की आग से दामन जलाते हैं। 

पाँव में पड़ी हैं मजबूरीयों की कड़ी-बेड़ियाँ 
मस्त चल रहे फ़िर भी हम न लड़खड़ाते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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