Thursday, October 27, 2022

{३९३ } चाहत के हरफ़





कुछ और  मेरे पास आ 
मेरे सँग तू भी  मुस्कुरा। 

भरोसा न हो  गर मुझपे 
तू  रकीबों के पास  जा। 

क्यों हो  रही बावरी  सी 
घड़ी दो घड़ी रुक जरा। 

इस दर्द से मुझे कर बरी 
या मेरा दर्द और दे बढ़ा।  

तेरी चाहत के हैं ये हरफ़ 
तू भी पढ़ और  गुनगुना। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 


रकीब = दूसरा प्रेमी 
हरफ़ = अक्षर 

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