पर नजदीक तू आता नहीं।
हम इस कदर क्यूँ मजबूर हैं
क्यूँ हो मंजूर जो भाता नहीं।
तुझे शिकवा मेरे न आने का
मेरी मुश्किल तू बुलाता नहीं।
गैर से खुल कर तू बात करे
मुझे देखके भी मुस्काता नहीं।
क्या बात है कुछ कह तो सही
क्यूँ तू मुझसे नज़र मिलाता नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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