Friday, February 4, 2011

{ ५ } स्त्री....






स्त्री,
एक छोटा सा शब्द,
कई विशाल अर्थ।

स्त्री मात्र शब्द नहीं,
स्त्री एक विचार है।
स्त्री मात्र शब्द नही,
स्त्री परिवार है।

स्त्री के बिना परिवार की कल्पना,
कभी सच न होने वाला सपना।

जन्मदायिनी माँ, एक स्त्री,
स्नेह की मूर्ति बहन, एक स्त्री,
जीवन यात्रा की संगिनी पत्नी, एक स्त्री।

तमाम ऐसे ही संबन्ध,
जैसे, दादी, नानी, मौसी,
बुआ, भाभी, बेटी आदि-आदि,
सभी का अपना महत्व।

स्त्री मात्र शब्द नही,
स्त्री एक भाव है।
स्त्री मात्र संबन्ध नहीं,
स्त्री एक निर्वाह है।

स्त्री, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई है,
स्त्री, राजपूताना गौरव पन्ना धाई है,
स्त्री ,प्रेम पुजारन मीरा है,
स्त्री, रानी पद्मिनी के जौहर की पीरा है,
स्त्री, ममता की मूरत यशोदा माता है,
स्त्री, असहाय देवकी की कारुणिक गाथा है,
स्त्री, सीता, तारा, मन्दोदरी है,
स्त्री, कुन्ती, द्रौपदी और गान्धारी है,
स्त्री, लय का आरोह है, अवरोह है,
स्त्री, राग कल्याणी है, राग भैरव है,
स्त्री, कपाल कुण्ड़ला, मुक्त केशा, काली है,
स्त्री, स्वर प्रदायनी, वाग्देवी, ब्राह्मी सरस्वती है,
स्त्री, महिषासुर मर्दिनी, जगदम्बा दुर्गा है,
स्त्री, सरल सलिला, भागीरथी गंगा है।

स्त्री, मात्र शब्द नही .......
स्त्री, संसार है,
स्त्री, जगत जननी है,
स्त्री, तीर्थ है,
स्त्री, मोक्ष है।

स्त्री, मात्र शब्द नही।।
स्त्री, मात्र शब्द नही ॥

................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

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