Saturday, February 26, 2011

{ २२ } यकीन..








मोहब्बत के ज़ज़्बे को दिल में जगा के तो देखो
ज़रा मुझको अपना चश्मे-शब बना के तो देखो।

मत सोचो ये कि हम गुजरे हुए कल के सपने हैं
अब छोडो बेरुखी मुझसे दिल से लगा के तो देखो।

पाल रखें हैं दिल में जो भरम वो सभी टूट जायेंगे
ज़रा मेरी सांसों मे अपनी सांसे मिला के तो देखो।

ज़माना क्या, मैं खुद से ही अब हो गया अजनबी
आँखों से धुन्ध की इस दीवार को हटा के तो देखो।

हर शख्स की आँख से अब आँसू खुशी के ही छलकें
अपनी आँखों पर पड़े हुए परदे को हटा के तो देखो।

मेरी दफ़न हुई मासूमियत अब भी शायद ज़िन्दा है
इस जमीं से माटी की परत को जरा हटा के तो देखो।

लौट आयेंगी अपनी महफ़िलों मे फ़िर से वही रौनकें
दिल से ज़रा वैसी महफ़िल फ़िर से सजा के तो देखो।

थम जायेगी समन्दर की लहरे, आसमाँ झुक जायेगा
बेरौनक अपनी फ़ितरत को दिलदार बना के तो देखो।

इन मिट्टी के बुतों-पुतलों में ज़िन्दगी को कहाँ ढूँढते हो
अपनी ज़िन्दगी को बस ज़िन्दगी सा बिता के तो देखो


..................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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