Friday, February 4, 2011

{ ९ } खुदा ही हमारा बना मददगार है




न ही है कोई मेरा दुश्मन, न ही कोई मेरा यार है,
मैं हूँ सिर्फ़ एक इंसान, मुझको सभी से प्यार है।

ये दुनिया ! केवल दुनिया ही नही एक बाजार है,
चाहे जिधर देखो, हरतरफ़ खडा एक खरीदार है।

सिर्फ़ पाने की चाहत दिलों में पाले हुए हैं सभी,
कोई नही है ऐसा जो कुछ देने को भी तैयार है।

जिसने अपना कभी भी किसी को बनाया नहीं,
इस दुनिया में उसका जीना ही समझो बेकार है।

पर न हो मायूस तुम इस इकराम-ए-ज़िन्दगी से,
रहमते आलम खुदा, खुद बना हमारा मददगार है।


................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


इकराम-ए-ज़िन्दगी = ईश्वर की दी हुई ज़िन्दगी



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