Friday, February 25, 2011

{ १६ } रोया बहुत.......





किस्मत आजमाई आशिकी में
पाया तो कुछ नहीं, खोया बहुत
गया जब भी नदी के किनारे
लहरों ने भी ठुकराया, रोया बहुत।
               रोया बहुत.................।।


मैं अनुरक्त हूँ तुममें
क्या तुम भी हो अनुरागी मेरे
रात-दिन सोचा किया
सपनों को भी संजोया बहुत।
               रोया बहुत..........।।


प्रीति की प्यास बुझती नही
जलाशय जो भी मिले सूखे मिले
देख दुर्गति आसक्ति की
हृदय को आँसुओं ने भिगोया बहुत।
               रोया बहुत....................।।


कैसा है ये निष्ठुर नेह निर्वाह
अन्तर पुरुष भी रो उठा
बन कर पवन अब तक
फ़रेबी बादलों को ढोया बहुत।
               रोया बहुत............।।


अरागी आचरण की कल्पना से
खंजर से चुभने लगे
फ़ूल साथ ही ले गये
पथ पर मेरे काँटों को तूने बोया बहुत।
               रोया बहुत........................।।


कल तक था प्रियतम मेरा
आज अप्रेय हो गया
छाया भी साथ छोडती तिमिर मे
सोंच कर यह आज मैं रोया बहुत।
               रोया बहुत..................।।


भग्न हृदय तो हो गया पर
मिट न सकेगी याद तेरी इस साँस से
धुल न सकेगी अक्श तेरा इस आँख से
पुतलियों को आँसुओं से धोया बहुत।
               रोया बहुत......................।।



........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल


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