Thursday, April 5, 2012

{ १२९ } हमे क्या मालूम





ज़िन्दगी कैसी दिखेगी, हमें क्या मालूम
ज़िन्दगी क्या लिखेगी, हमें क्या मालूम।

शान बनी तनहाइयाँ, आँख ढके परछाइयाँ
ज़िन्दगी इसे कैसे सहेगी, हमें क्या मालूम।

उठती ऊँची दीवार, हर आदमी लगे बीमार
ज़िन्दगी क्या-क्या कहेगी, हमें क्या मालूम।

हर गुल में टकराव, हर दिल में हो बिखराव
ज़िन्दगी किस तरह चलेगी, हमें क्या मालूम।

हवाओं को क्या हुआ, दिशाओं को क्या हुआ
ज़िन्दगी किस तरह रमेगी, हमें क्या मालूम।


.................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


1 comment:

  1. Sach me hamein kuchh nahi maloom .. kab kya hoga,
    ये हवाएँ कब क्या रंग लाएँगी?
    ये फिजाएँ कब क्या गुल खिलाएँगी?
    समय की पैदाइस का हमें क्या पता?
    कौन सी घड़ी कौन सा मुँह दिखाएगी?
    Life is Just a Life
    My Clicks
    .

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