Saturday, April 28, 2012

{ १४५ } ज़िन्दगी-ए-रिन्द




मयकदे में शराब नही है तो क्या है
मयकशी शबाब नही है तो क्या है।

वो रोज न पीने की कसम खाता है
उसका दिल खराब नही है तो क्या है।

मयकदे आ कर भी प्यासा बैठा रहूँ
तश्नगी में शराब नही है तो क्या है।

रब ने ज़िन्दगी दी है रिन्द होने को
नाखुदा ये शराब नही है तो क्या है।

दुनिया ने हमें आँसू दिये कितने ही
इलाज ये शराब नही है तो क्या है।

मयकदे मे हरतरफ़ जगमगाहट है
मयकदा आफ़ताब नही है तो क्या है।


.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


शबाब = पुण्य
तश्नगी = प्यास
रिन्द = शराबी
नाखुदा = नाविक
आफ़ताब = सूरज

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