Thursday, April 19, 2012

{ १३५ } लायें जगमगाता सूरज-सबेरा





अराजकताओं की आओ हम मिलकर
तोडें ये बडी और कठोर सी शिलायें
हर घर-गली और हर शहर-गाँव में
हटा कर छल-कपट-पाखंड का अँधेरा
आओ, लायें जगमगाता सूरज-सबेरा।।

हर तरफ़ आतंक-अन्याय का तम है
स्वार्थ ने रच दिया अजीब सा भ्रम है
बाहुबलियों के हा्थों बन्दी है रोशनी
बन गई चेरी, चील-गिद्धों की योगिनी
जगमगा रहा केवल शोषकों का बसेरा
आओ, लायें जगमगाता सूरज-सबेरा।।

भविष्य खेल रहा भूखे, नंगे, उघारे तन
सिंह-शावक बैठ गये चुप हो मेमने बन
सन्यस्त की कुटियों से रूठ गया उजाला
यग्य-हवन धूम्र नही, बह रहा धुआँ काला
इन काली आँधियों ने ढाँप लिया घनेरा
आओ, लायें जगमगाता सूरज-सबेरा।।

उन्नत राष्ट्र का स्वप्न साकार करें हम
धृतराष्ट्र के कुशासन का संहार करें हम
गूँगे-बहरों की आवाज-ललकार बने हम
भारत माता की तेग - तलवार बने हम
निष्प्राण करें नाग-नागिन को बन सपेरा
आओ, लायें जगमगाता सूरज-सबेरा।।


..................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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