Wednesday, March 7, 2012

{ १०९ } मुझे वापस कर दे





वो रात और वो दिन मेरे अपने मुझे वापस कर दे
वो बीते हुए पल, वो मेरे सपने, मुझे वापस कर दे।

लफ़्ज़ मर चुके हैं सारे, हर सदा आसमाँ में खो गई
दर्द में डूबे हुए लम्हे मेरे अपने, मुझे वापस कर दे।

खुशरंग चेहरों की सजी हुई महफ़िल अब यहाँ नही
मेरी साँसें, मेरी सुखदाई महकें मुझे वापस कर दे।

अब यहाँ खंजर ही खंजर और आँसुओं के संगरेज़े है
मेरी कमनसीबी के हँसते सितारे मुझे वापस कर दे।

आग तो बुझ चुकी, सब तरफ़ धुआँ-धुआँ ही रह गया
मेरे सुखन, मेरी दर्द मे डूबी गज़लें, मुझे वापस कर दे।


............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



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