Sunday, March 4, 2012

{ १०८ } किससे दिल की बात करूँ






रुसवाई और तनहाई साथी हैं अब किसका मैं साथ करूँ
किसको दिले जख्म दिखाऊं, किससे दिल की बात करूँ।

धन-दौलत की इबादत को ही, उठते हैं जहाँ हाथ हमेशा
किसको अपना हमराह कहूँ, किससे दिल की बात कहूँ।

ज़िन्दगी के सफ़र में अपनी साँसे ही हैं अपनी हमसफ़र
अब और किसका रहा सहारा, और किसके साथ चलूँ।

रात तो काली ही है हरदम अब दिन भी काला-काला है
मेरी किस्मत ही ऐसी है, मैं जलूँ और सारी रात जलूँ।

कौन है दिलबर मेरा जिसके लिये हो मेरा दिल बेकरार
सब ही हैं यहाँ बेगाने जैसे, किसके दिल में जा वास करूँ।


.............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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