Tuesday, May 29, 2012

{ १७५ } ज़िन्दगी कुछ सुन रही है





सूनी सी पगडँडी पर
एक आस अभी
साँसें ले रही है।

आँखों में निर्जीव आशा
बुझ-बुझ कर
जल रही है।

कोई तो आयेगा
इस राह पर___
देखे हैं चिन्ह मैंनें
जीवन के यहाँ पर___

पदचिन्ह कहो या
साँसों की
धीमी सी आहट।

इँतज़ार में पदचापों की
सरसराहट सुन रही है।

सूनी सी पगडँडी पर
ज़िन्दगी कुछ सुन रही है।
हाँ ! ज़िन्दगी कुछ सुन रही है।।


............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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