Sunday, May 13, 2012

{ १६१ } एहतराम किया है मैंने





गम और खुशी सबका एहतराम किया है मैने
ऐ ज़िन्दगी तुझको खूबसूरती से जिया है मैने।

कोई मानता नही मेरी इस दीवानगी को ऐ खुदा
पत्थर को भी तो खुदा का ही दर्जा दिया है मैने।

तेरे हर एक खुश-मंसूबों को सहेज कर रखा है
अमानत सा पाला पोसा फ़र्ज अदा किया है मैने।

ज़िन्दादिली की हसरत तूने इस कदर बढा दी
खुद अपनी मैय्यत को काँधा दे दिया है मैने।

तेरे इस जहाँ में जगह-जगह फ़ैले हैं कदरदान
मिले जहाँ-जहाँ, उनको सलाम किया है मैने।

उल्फ़त नही सँभलती, नफ़रत कहाँ थी बस में
इकराम-ए-ज़िन्दगी को खुशी से जिया है मैने।

हर शह को रब पर छोडा और भूले सारी रस्में
बन्दे हैं खुदा के, खुदा को सलाम किया है मैनें।


...................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


एहतराम = सम्मान
खुश-मंसूबों = नेक इरादे
इकराम-ए-ज़िन्दगी = भगवान की दी हुई ज़िन्दगी



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