Sunday, May 6, 2012

{ १५४ } आइना तरसता है हमारा





हुस्न के अक्स को आइना तरसता है हमारा
दिन ढलते ही दिल डूबने सा लगता है हमारा।

कब समाँ देखेंगे, दिले-जख्म के भर जाने का
बुरा वक्त गुजरने को नही मचलता है हमारा।

आधी-अधूरी ख्वाहिशों का सिलसिला रह गया
मंजिलों से हर वक्त फ़ासला रहता है हमारा।

मैं ही सबब था शायद अपनी इस शिकस्त का
एहसासे-मसर्रत दर पे नहीं रुकता है हमारा।

हमसे उन बीती हुई शामों का चर्चा न कीजिये
एहसास नही है आपको, दिल डूबता है हमारा।


........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल



एहसासे मसर्रत = खुशी


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