Friday, May 4, 2012

{ १५२ } ज़िन्दगी, तुम्हे सँवारते रहे हम




हम जिये भी तुम्हारे लिये मरे भी तुम्हारे लिये
घुटन, दर्दे-दिल बचा है किस्मत में हमारे लिये।

हमने ही फ़ूल बोए थे, खारों को भी सहेजा हमने
अब पराया हो गया वो ही गुलिस्ताँ हमारे लिये।

किस्मत के आगे ये ज़िन्दगी भी हो गई मजबूर
माँगी दुआएँ, बदल न सके किस्मत तुम्हारे लिये।

ज़िन्दगी कभी शैतान, कभी बेमुरव्वत की तरह
ज़िन्दगी मे ढूँढते रहे मासूमियत तुम्हारे लिये।

बेकार सब सुख-सपन हुए, बरबाद साँसें हो गईं
ऐ ज़िन्दगी, तुम्हे सँवारते रहे हम तुम्हारे लिये।


............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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