Wednesday, November 2, 2022

{४०० } नींद हैं और न हैं ख्वाब





नींद हैं और न हैं ख्वाब 
ये कैसी पिलाई शराब। 

दिल में  वीरनियाँ  बसीं 
हैं खटकते गुलो गुलाब। 

अश्कों ने उम्र भर लिखी 
मेरे ही गमों की किताब। 

सह न पाओगे तुम कभी 
मेरा ढ़लता हुआ शबाब। 

आँखों-आँखों में ही मिला 
मुझे  सवाल  का जवाब। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

No comments:

Post a Comment