Wednesday, November 2, 2022

{३९९} साया कहाँ गया





पूरी तरह से सच कभी  ये बताया कहाँ गया 
होते  ही गुम  उजाले के  साया  कहाँ  गया। 

कट कर दरख्त छत बनी, साये की चाह में 
लेकिन कोई भी पेड़ फिर लगाया कहाँ गया। 

जिद थी जिन्हे  बुझाने की  जलते हुए  चराग 
कोई चराग  फिर उनसे  जलाया कहाँ गया। 

मैं बन - सँवर के बैठा  रहा सारी  शब मगर 
ख्वाबों में  तेरे मुझ  को बुलाया  कहाँ  गया। 

ये जान भी हाजिर है  सनम आप की खातिर 
कहते सब हैं पर कभी ये निभाया कहाँ गया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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