Thursday, September 15, 2022

{३५०} हाँ, वो किसान है




हाँ, वो किसान है। 
चीर कर धरती का सीना 
वो बहाता नित पसीना 
वो ही गेंहू बाजरा और धान है। 
हाँ, वो किसान है।। 

खेतों को उसने जतन से है पाला 
उससे ही है तेरा और मेरा निवाला 
वो ही इस देश की पहचान है। 
हाँ, वो किसान है।। 

धूप और बारिश मे पला है 
अपनों ने ही रोज उसे छला है 
कदम-कदम पर वो परेशान है। 
हाँ, वो किसान है।।

बादलों से आस टूटी 
जैसे उसकी साँस छूटी 
सूखती फसलों का वो श्मशान है। 
हाँ, वो किसान है।।

ज़िंदगी बहुत पड़ी है 
मुश्किलें बड़ी-बड़ी हैं 
टूटते उसके अरमान हैं। 
हाँ, वो किसान है।।

.. गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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