Wednesday, September 14, 2022

{३४८} तमाम उम्र का हिसाब निकाल के रख



तमाम उम्र का हिसाब निकाल के रख
बची जरा सी उम्र उसे सम्हाल के रख ।

हर कदम यहाँ फिसलन ही फिसलन है
बाकी सफर है कदम देख-भाल के रख। 

हसीन ख्वाब आते हैं पर सच नहीं होते 
इन्हे कुछ दिन के लिए तू टाल  के रख। 

हयात जैसी भी गुजरी है गुजरी बेहतर 
जो बाकी है उम्र बिना सवाल के रख। 

चिराग जैसे है वैसी ही है रौशनी उनकी 
चुनांचे जेहन में खयाल कमाल के रख। 

..  .. गोपाल कृष्ण शुक्ल 

3 comments:

  1. अति उत्तम। जीवन का सत्य दर्शाया है आप ने।
    पूर्णतया सहमत हूं आप की उत्कृष्ट रचना से।

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    1. आपका मेरी इस रचना के प्रति अमूल्य समर्थन पा कर अभिभूत हुआ, धन्यवाद

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