Monday, December 24, 2012

{ २२० } खत्म होगा सिलसिला अँधेरों का





लकीरों पे नहीं अपने हाथों पे करो भरोसा, मुकद्दर सँवर जायेगा
ये वक्त एक चलता पहिया ही है, गुजरते-गुजरते गुजर जायेगा।

जमाने के दिये गम है जुगनू की रोशनी, जलती-बुझती रहती है
रब के दीपक रहते हैं रोशन, तारीकिये-शब के बाद सहर आयेगा।

ज़िन्दगी में हादसे चाहे तमाम बार गुजरे पर हिम्मत से काम लो
गमों की भीड में अपने बुलन्द हौसलों से ही वक्त सँवर पायेगा।

तन्हाई, खामोशी, दर्द और गमों को अब कोई दूसरा ही नाम दे दो
मस्ती, शादमानी को बनाओ सुरूर मलंगी में वक्त गुजर जायेगा।

खत्म होगा सिलसिला अँधेरों का, जलेंगे फ़िर से टिमटिमाते दिये
खुश्बू फ़ैलाती हुई हवाओं में ये उदासी का मौसम बिखर जायेगा।

रँग बदलती इस दुनिया में कोशिशों से ही सब कुछ बदला करता
बस छोडो थकन जोशो-जुनूँ से बुरे से बुरा वक्त भी सुधर जायेगा।


................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


तारीकिये-शब = रात का अँधेरा
सहर = सुबह, सबेरा
शादमानी = खुशी
सुरूर = नशा
मलंगी = अलमस्ती

No comments:

Post a Comment