Tuesday, April 14, 2015

{ ३०६ } बतलाओ हँस लूँ या रो लूँ





उम्र भर खामोश रहा अब अंजुमन से क्या बोलूँ
कोई दवा न देगा ऐसे में दिल के दर्द क्या खोलूँ।

हर हालात मे मुस्कुराने की आदत थी हमे कभी
अब दिल रहता उदास बतलाओ हँस लूँ या रो लूँ।

बेरुखी के खण्डहर में हरतरफ़ अँधेरा ही अँधेरा है
आस का चिराग जला कर प्यार को कहाँ टटोलूँ।

मोल हँसने का मुझे रो-रो कर अदा करना पड़ा
बताओ अपने कड़वे हरफ़ों मे कैसे मिठास घोलूँ।

मँझधार में हमको यूँ छोड़ कर जाने का शुक्रिया
मौका है कि अब मैं अपनी ताकत को भी तोलूँ।

................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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