Friday, March 29, 2013

{ २५७ } आशाओं के दीप जलाओ






आशाओं के दीप जलाओगे जब
चहुँ ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा।

यदि टूट गये हों सपने तो क्या
यदि छूट गये हों अपने तो क्या
सबके सब चलते अपनी राहों पर
उजियारी- मतवारी चाहों पर।

पर राहों मे फ़ूल बिखराओगे जब
चहुँ ओर सुगन्ध-सुवास होगा।।१।।


मौसम भी तो बदले तेवर
दिशाहीन हो उडते कलेवर
रक्त गँध पूरित हवायें आती
छाती को चीर-चीर कर जाती।

पर बसन्त के गीत गुनगुनाओगे जब
चहुँ ओर मन-मुदित मधुमास होगा।।२।।


कल क्या होगा किसने देखा
क्यों डाल रहे माथे पर तिरछी रेखा
कामना ही सबको यहाँ छलती है
वर्तिका वेदना की ही जलती है।

पर प्रेम का संगीत बजाओगे जब
चहुँ ओर प्रेम-हास-परिहास होगा।।३।।


............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


8 comments:

  1. बहुत खूब शुक्ल जी !



    आज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. मेरी रचना को ब्लाग बुलेटिन मे शामिल करने के लिये आपका बहुत आभारी हूं शिवम मिश्र जी...

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  2. शुक्लजी बहुत ही प्यारी लगी आपकी रचना .....पाजिटिविटी से भरपूर

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत आभार चिन्तामणि जी

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