Tuesday, March 5, 2013

{ २५० } कत्ल हुआ दिल






टकरात क्यों आइना पत्थर से बार-बार
डूबता है दिल दर्दे-समन्दर में बार-बार।

समझ ही न सका कि मेरा कुसूर क्या है
सुनता रहा सजा सितमगर से बार-बार।

अपने प्यार की शिकायत करूँ किस से
लुटा हूँ बीच राह गारतगर से बार-बार।

जिनके लिये जला किये शमा की तरह
कत्ल हुआ मैं उसी चारागर से बार-बार।

दरिया सा मस्त बहना था अपना अंदाज़
लड रही तकदीर अब मुकद्दर से बार-बार।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


गारतगर = लुटेरा
चारागर = हकीम


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