Friday, February 8, 2013

{ २३६ } पूरा शहर बीमार नज़र आता है






पूरा शहर अब बीमार नज़र आता है
यहाँ हर शख्स बेज़ार नज़र आता है।

नाज़ुक कोयल अपनी गज़ल पढे कैसे
सजा कौव्वों का दरबार नज़र आता है।

निर्झर झरने कैद हो चुके हैं चट्टानों में
गुलो-गुलशन खरज़ार नजर आता है।

प्यार, आरजू, खुश्बू, चाहत हुई गायब
बस दर्दो-गम का मीनार नज़र आता है।

सच्चाइयाँ दफ़्न हो चुकी हैं कब्रगाह में
हर तरफ़ झूठ का बाज़ार नजर आता है।


____________________________ गोपाल कृष्ण शुक्ल

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