Monday, December 7, 2015

{ ३१८ } मेरी ये ज़िन्दगी





ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी से ही जँग जारी है
अश्कों के सैलाब में तैरती कश्ती हमारी है।

वक्त बन न सका दोस्त कभी भी हमारा
वक्त के हर लम्हे को दुश्मनी ही प्यारी है।

दुश्मनों से दोस्ती कभी दोस्तों से दुश्मनी
ज़िन्दगी भी दिखाती अजब ही किरदारी है।

देखा है ज़िन्दगी को बहुत ही करीब से हमने
ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी की ही जिम्मेदारी है।

मेरे मुकद्दर का ही आईना है मेरी ये ज़िन्दगी
जो कभी मीठी-मीठी तो कभी खारी-खारी है।

........................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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