Wednesday, April 3, 2013

{ २५९ } हसीन शाम






कितनी हसी्न खिली है शाम
आओ टकरायें जाम से जाम।

लब भी गुनगुना उठे प्यार से
बताओ ऐसा कोई प्यारा नाम।

लौटॆं फ़िर से प्यार की खुश्बूयें
डूबे रँगीनियों में सुबहो-शाम।

टकरा कर गुलों की खुश्बू से
ऋतुयें भी करें हमको सलाम।

जो कम करे दिलों के बोझ को
ऐसे गमों से लें हम इन्तकाम।


...................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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