Saturday, September 15, 2012

{ १९४ } मुझ सी दीवानी





मुझ सी ही दीवानी लगती है वो
पल में रोती, पल में हँसती है वो।

उम्मीद जब कोई जगती सीने में
दरवाजे को रात भर तकती है वो।

दिलबर आते पल भर को पास मे
नई दुल्हन सी फ़िर सजती है वो।

दूरियाँ जब भी दिलों की बढ जातीं
दिल ही दिल में जला करती है वो।

लिख कर कागज मे अपना ही राज
उलझी-उलझी सी फ़िर दिखती है वो।


----------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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