Monday, September 10, 2012

{ १९१ } खुद्दारी





अच्छा है यही जो रहे खुद्दारी
जेब में रख ले ये दुनियादारी।

गर दर्द छुपा कर हँसेगें हम
तो अश्कों से होगी ये गद्दारी।

हँस के मिलो तो सोचे दुनिया
इसमें मतलब छुपा है भारी।

जो देह के भूखे वो क्या जाने
ये प्यार, ये वफ़ा, ये दिलदारी।

हम बाते करते-सच्ची-सच्ची
किसी को लगती मीठी-खारी।


............................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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