Wednesday, February 22, 2012

{ ९९ } दर्द के पैबन्द







तुम भी बदले हम भी बदले पर ये हालात न बदले
न ही खुश तुम न खुश हम पर ये सवालात न बदले।

इश्क के इस चिथडे बदन पर सभी हैं पैबन्द दर्द ही के
जुनूँ पर तंज सा करते रहते पर ये हालात न बदले।

दरिया की मौजों संग भटका जाने कितने घाव मिले
डगर-डगर गूँजे नग्मे दर्द भरे, पर ये हालात न बदले।

जल कर बुझना तो मुकद्दर ही था चिरागों का फ़िर भी
हवाओं को बेचजह रोका किया पर ये हालात न बदले।

दिल की तलाश में ही नाकामे-मोहब्बत के सफ़र में हूँ
हूँ दिल-शिकस्ता जीस्त भर गमों के लम्हात न बदले।



......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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