Wednesday, November 9, 2011

{ ६५ } अन्तिम पिपास




अपना नही है कोई, मुझे किसकी तलाश है
किसको ढूँढता हूँ, कौन मेरे आस-पास है।

कोई आकर मुझे कुछ तसल्ली तो दिलाये
कौन है मेरी गज़ल और कौन मेरी प्यास है।

आँसुओं से ही अपने लहजे को सींचा किया
उदास है मेरे हर्फ़ और मेरी कलम उदास है।

साथ चल रही तल्खी, रुसवाई ही हकीकत है
अब खयालों का सहारा, ख्वाबों का लिबास है।

ज़िन्दगी की हमसफ़र हैं गमों से भरी गढरी
ज़िन्दा हूँ किस लिये, किसे पाने की आस है।

गुलशन में थी जो खुश्बुयें वे सभी मिट चुकीं
फ़िज़ा में मस्ती कहाँ, अब दर्द का एहसास है।

अब न कोई गीत, न गज़ल, न नज्म बाकी है
शून्य में लफ़्ज़, मुक्ति चाह अन्तिम पिपास है।


.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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