Thursday, June 9, 2011

{ ४२ } फ़िजायें भारी







क्यों हो गयी है आज देश की ये फ़िजायें भारी,

अब घुट रहा दम, हो गयी इतनी फ़िजाये भारी।


चैनो-आराम खोया, बहता लहू राहों-चौराहों पर,

कराह हुई मुश्किल, इस कदर है फ़िजाये भारी।


उन्मुक्त हो गगन मे परिन्दे भी अब उड न पाते,

नीड भी रक्षित नही उनका, ऐसी फ़िजाये भारी।


हो चुके जो बदनाम और कलंकित गली-गली मे,

वो सिर उठाये घूमते, कर रहे और फ़िजायें भारी।


गद्दियों पर आज भी वैसे ही जमे है कंस बन कर,

सिहांसन भी हो रहा लज्जित और फ़िजाये भारी।


अब भी समय है उठो, चेत जाओ ऐ कर्मयोगियो,

उखाडो भ्रष्ट सत्ता, करो आजाद फ़िजाये सारी।



...................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल




1 comment:

  1. देश की आज की स्थिति के सर्वथा उपयुक्त रचना

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