Sunday, March 27, 2011

{ २७ } प्रीत






स्वप्न दर्शित आस को विश्वास देकर
मनुज को एकत्व का वरदान दे दो ॥

प्यार से आबध्द कर उन्मन मनों को
अहम की भ्रान्ति को सत्वर मिटा कर
भाव मे सदभाव को आवास देकर
मनुज को देवत्व का संधान दे दो ।

मरुथलों को भुवन-मोहन हास देकर
चेतना के पुंज को सम सा रिझाकर
सुमन को शाश्वत ललित मधुमास देकर
दिव्य तन-मन को चिरंतन ग्यान दे दो ।

प्रीति के स्वर्ग को लाकर धरापर
विषमता की भूमि पर अमृत लुटाकर
कल्प को संकल्प सा अपना बनाकर
व्यक्ति को नव-सृष्टि का अभियान दे दो।

स्वप्न दर्शित आस को विश्वास देकर
मनुज को एकत्व का वरदान दे दो ॥

........................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


1 comment:

  1. मनोहारी भाव,सुंदर भाषा
    और छंदमय ... गेयता का बोध...

    बधाई आपको गोपाल जी...
    और आभार इतनी सुंदर रचना पढवाने के लियें..

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