Tuesday, April 25, 2017

{३४१} मुरझा चली हैं तमन्नायें





खो गईं हैं सब कामनायें
सो गईं हैं  सम्भावनायें।

पास रह  गईं हैं उलझने
यातनायें  ही  यातनायें।

नाम की  बस  ज़िन्दगी
मर गई  सब  भावनायें।

रब भी  अब सुनता नहीं
लौट आईं सब प्रार्थनायें।

अब छोड़ ही दूँ ये दुनिया
मुरझा चली हैं तमन्नायें।

........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

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